कोरबा/पाली(IBN-24NEWS) जिले के आबकारी विभाग अमला द्वारा इन दिनों मुखबीर तंत्र के निर्देशन पर गांव- गांव पहुँच महुआ शराब, गांजा बिक्री के ठिकानों पर छापेमार कार्यवाही किया जा रहा है, लेकिन इसके पीछे विभाग का मंशा अवैध नशीले पदार्थों पर शिकंजा कसना नही बल्कि रंगदारी वसूली के रूप में जेब गरम करना है। जहां कार्यवाही की आड़ में जमकर माल बटोरा जा रहा है।
वैसे तो सूचना तंत्र में अभी तक पुलिस विभाग में ही मुखबीर की भूमिका पर्दे के पीछे रहती थीं, जो अंडर कवर के रूप में काम करते है, और उनका काम पुलिस को सूचना देना रहता है। जहां उनका नाम कही भी सार्वजनिक नही किया जाता। लेकिन अब आबकारी विभाग में भी मुखबीर तंत्र, वह भी उनके इशारे पर धरपकड़ की कार्यवाही हो रही है। तथा जो मुख्य रूप से अवैध रूप से शराब, गांजा बेचने वालों के सूचना के साथ सेटिंग कार्य हेतु नियुक्त है। कहने को तो वे भले ही मुखबीर है, किंतु जिनका व्यवहार एक अधिकारी की तरह, या यूं कहें कि वे अपने आप को आबकारी अधिकारी से कम भी नही समझते है। और बकायदा आबकारी अमला के साथ शासकीय गाड़ी में सफर करते है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रो में बिक रहे अवैध शराब, गांजा बिक्री के स्थलों में छापेमारी की पूरी कार्यवाही नियुक्त उन मुखबीर के सुझाव व इशारे पर ही होता है। सबसे पहले जिस महुआ शराब अथवा गांजा बिक्री वाले घर मे छापा मारा जाता है, उस घर के भीतर सबसे पहले मुखबीर खरीददार बनकर जाता है तथा वस्तुस्थिति का मुआयना कर इस बाबत सूचना कुछ दूर ठहरे आबकारी अमला को देता है। जहां अमला द्वारा मौके पर दबिश देकर तलाशी अभियान के साथ भारी- भरकम कार्यवाही का भय दिखाया जाता है। इसी बीच मुखबीर के माध्यम से लेनदेन की बात शुरू होती है। तब मामला सेट हो गया तो कोई अपराध नही बनता और अवैध विक्रेताओं को बकायदा मोबाइल नंबर देकर माहवारी तय कर दिया जाता है वरना अपराध कायम कर लिया जाता है। आबकारी विभाग अमला के इस कृत्य से जहां गांव- गांव में हाथभट्टी शराब व गांजा बिक्री के मामले बढ़े है। वहीं 12- 14 वर्ष के नाबालिग भी उक्त नशे के गिरफ्त में आते जा रहे है। जिसके कारण ग्रामीण इलाकों के वातावरण में अशांति के साथ छिटपुट आपराधिक घटनाओं में भी वृद्धि होने लगी है। और यह नशा घरों में कलह का कारण भी बनते जा रहा है। आबकारी विभाग अमला के छापेमार कार्यवाही को लेकर कई मौकों पर इनके ऊपर आरोप भी लगते रहे है। जिसकी शिकायतें पुलिस व प्रशासन के पास होती रही है। किंतु कार्यवाही को लेकर अबतक की खामोशी और भी गंभीर विषय बनकर रह गया है। अब ऐसे में अश्वमेघ के घोड़े पर तो दो बहादुर वीरों ने लगाम कस लिया था किंतु शराब, गांजा जैसे असामाजिक कार्यों पर रोक लगाने के बजाय बढ़ावा देने में माहिर बेलगाम आबकारी विभाग पर लगाम कौन कसे..? गांव- गांव बिक रहे महुआ शराब, गांजा के अड्डों पर जाकर कार्यवाही की आड़ में आबकारी विभाग के वसूली का यह सिलसिला यदि इसी प्रकार चलता रहा तो शांतिप्रिय क्षेत्र के अमन- चैन में ग्रहण लगने से नही बचाया जा सकता।
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