आरआई और पटवारियों के मुख्यालयों में नहीं रहने से आम जनता परेशान, प्रशासन मौन.....।



दीपक गुप्ता की खास रिपोर्ट


गौरेला-पेंड्रा-मरवाही(IBN-24NEWS) जीपीएम जिले के गठन की बाद से आम जनता और किसानों की राजस्व विभाग से संबंधित समस्याएं घटने के बजाय लगातार बढ़ती जा रही है l इसका मुख्य कारण है जिले में पटवारियों की कमी और राजस्व निरीक्षकों व पटवारियों के अपने मुख्यालयों से कई कई दिनों तक नदारद रहना l  आरआई और पटवारी अपने-अपने मुख्यालयों में नहीं रहते हैं और हफ्ते या पखवाड़े में एक दिन मुख्यालय आने का प्लान बनाकर चलते हैं और बिना मोटी रकम के कोई भी काम नहीं करते, जिसका खामियाजा आम जनता और किसानों को भुगतना पड़ता है l अब तो जिले में आम जनता और किसानों के दिलो-दिमाग में यह बात बैठ चुकी है कि पटवारी बिना पैसे के कोई भी काम नहीं करते और जब भी किसानों को पटवारी के पास किसी काम के सिलसिले में जाना होता है वह खुद रकम साथ लेकर ही जाने लगे हैं l  जीपीएम जिला आदिवासी बहुल जिला होने के कारण यहां के अधिकतर लोग सीधे और सरल स्वभाव के होते हैं जिन्हे बाहर से आने वाले अधिकारी और कर्मचारी आसानी से भांप जाते हैं l  जिसके बाद कायदे-कानून का हवाला देकर अधिकारी, कर्मचारी आम जनता का शोषण करने लगते हैं l यही कारण है की राजस्व विभाग में भ्रष्टाचार इन दिनों खूब फल फूल रहा है, राजस्व विभाग के  अधिकतर पटवारी और आरआई अपने मुख्यालय छोड़कर ब्लॉक मुख्यालयों के आसपास या फिर शहरों में जाकर रहते हैं जिसके कारण छोटे-छोटे कामों के लिए भी किसानों को लंबी दूरी तय करके पटवारी और आरआई के निवास स्थान पर मजबूरी वस काम कराने जाना पड़ता है l पटवारी तो कभी कभार अपने हल्का में आ भी जाते हैं  लेकिन जिला प्रशासन द्वारा  राजस्व निरीक्षकों को खुली छूट दी जा रही है राजस्व निरीक्षक महीनों तक अपने मुख्यालय नहीं आते हैं और उच्च अधिकारियों द्वारा कभी भी राजस्व निरीक्षकों के कामों  का निरीक्षण नहीं किया जाता है l लंबी दूरी तय करके अपने निवास स्थान पर आने वाले किसानों की बेबसी, लाचारी का फायदा उठाकर पटवारी और आरआई उनसे मनमाने ढंग से वसूली करते हैं l  परेशान होकर यदि कोई किसान उच्च अधिकारियों को शिकायत भी करता है तो शिकायतों को कचरे के ढेर में फेंक दिया जाता है l पटवारियों के मुख्यालय में नहीं आने के कारण लोगों को जाति, निवास, आय प्रमाण-पत्र तक बनवाने के लिए लंबी दूरी तय करके पटवारियों के निवास स्थानों तक जाना पड़ता है l आपसी बटवारा, फौती नामांतरण, सीमांकन, नक्शा बटांकन, डीएससी से लेकर कटे-फटे पर्ची के नवीनीकरण कराने तक के लिए भी आम जनता और किसानों को पटवारी और राजस्व निरीक्षकों को मोटी रकम देनी पड़ती है l जिसका कुछ हिस्सा ऊपर तक के आला-अधिकारियों तक भी पहुंचती है यही कारण है कि पटवारी और आरआई तहसीलदार के आदेशों, निर्देशों का खुला उल्लंघन करते नजर आते हैं और नक्शा बटांकन के आदेशों को तीन-तीन सालों तक मोटी रकम लेने के चक्कर में लटका कर रखते हैं l जिसके साक्ष्य जनसंवाद के पास मौजूद हैं और इस गोरखधंधे का बड़ा खुलासा जनसंवाद साक्ष्यों सहित जल्द ही करने जा रही है।

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