पुरातत्विक एवं पौराणिक ग्राम धनपुर जंहा पहाड़ियों के नीचे विराजी है श्री आदिशक्ति मां दुर्गा।




संवाददाता- दीपक गुप्ता की खास रिपोर्ट


गौरेला पेंड्रा मरवाही(IBN-24NEWS) नवगठित  गौरेला पेंड्रा मरवाही  जिले के  विकासखंड  मुख्यालय पेंड्रा से उत्तर में सिवनी जाने के रास्ते में पेंड्रा से 14 किलोमीटर दूर मुख्य मार्ग में पुरातात्विक पौराणिक गांव धनपुर स्थित है। यह धनपुर गांव बिलासपुर कटनी रेल मार्ग के पेंड्रा रोड रेलवे स्टेशन से 22 किलोमीटर दूर स्थित है जबकि विकासखंड मुख्यालय मरवाही से ग्राम धनपुर की दूरी 30 किलोमीटर है। 



पुरातात्विक महत्त्व के ग्राम धनपुर में जन श्रुति के अनुसार प्राचीन काल में पांडवों ने रतनपुर में रहने के बाद 1 वर्ष का अज्ञातवास धनपुर के जंगलों में व्यतीत किया था। इस दौरान उन्होंने लगभग 350 तालाब भी बनाए जिनमें से 200 की संख्या में तालाब अभी भी अस्तित्व में है जबकि बाकी तालाब किसानों ने खेत बना लिए हैं। धनपुर मैं खुदाई के दौरान अनेक तरह की मूर्तियां एवं निर्माण के अवशेष मिलते हैं यह शिल्प अविभाजित बिलासपुर जिले में बिखरे जैन कलचुरी  हैहैवंशी मूर्ति शिल्प के समकालीन है जो नवीं दसवीं शताब्दी के मालूम पड़ते हैं। धनपुर जैन धर्मावलंबियों के आश्रय का केंद्र रहा होगा यह यहां यत्र तत्र बिखरी जैन मूर्तियों के अवशेष से पता चलता है। 


प्राचीन काल में धनपुर उत्तरा पथ को दक्षिणा पथ से जोड़ने वाला प्रमुख मार्ग रहा है। यह मार्ग अंडी कुड़कई झावर बसंतपुर सोनबचरवार होकर केंदा मातिन वा लाफा जमीदारी से होता हुआ रतनपुर से जुड़ा हुआ था। यही मार्ग जांजगीर शिवरीनारायण नारायण से होकर जगन्नाथपुरी से जुड़ा हुआ है पुराने समय में पशु बाजारों के लिए जाने के लिए यह पशु मार्ग था इस मार्ग पर पड़ने वाले मार्ग में नायक जाति के लोग मिलेंगे जो प्राचीन काल में उत्तर से दक्षिण भारत के मध्य संपर्क सूत्र के रूप में बंजारे का भी कार्य करते थे। 


प्राचीन काल में यहां पहाड़ी में स्थित पांडव गुफा में से एक गुप्त मार्ग सोहागपुर को जाता था जिस से धनपुर गुप्त मार्ग के द्वारा सोहागपुर एवं रतनपुर से जुड़ा हुआ था ।धनपुर में बेनीबाई ,शहर खेरवा, भस्मासुर नामक स्थल है। यहां पहाड़ी के नीचे श्री आदिशक्ति मां दुर्गा देवी का प्राचीन मंदिर है जिसका पौराणिक महत्व है लगभग 20 वर्ष पूर्व धनपुर में एक तपस्वी युवा संत बाबा मनु गिरी आए तथा  वही देवी मंदिर के ऊपर पहाड़ी में स्थित  गुफा में  तप करने लगे । गांव वालों के संपर्क करने पर तपस्वी संत ने धनपुर के देवी स्थान की महत्वता को देखते हुए यहां श्री दुर्गा देवी जी के मंदिर के निर्माण का  प्रकल्प प्रस्तावित किया  जिसे  सभी लोगों ने स्वीकार करते हुए  सार्वजनिक  सहयोग से  श्री आदिशक्ति मां दुर्गा देवी  के मंदिर का निर्माण करना शुरू कर दिया । लगभग  4000 वर्ग फिट  में बन रहे नवनिर्मित दुर्गा मंदिर के  3 गर्भगृह  है जिनके तीनों गुंबज ओं का निर्माण पूर्ण हो चुका है तथा मंदिर के सुंदरीकरण का कार्य बाकी है। श्री आदिशक्ति मां दुर्गा देवी मंदिर पब्लिक ट्रस्ट धनपुर विकासखंड मरवाही के नाम से प्रचलित धनपुर का यह देवी स्थान मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है वर्षभर यहां श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है तथा यहां प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्रि तथा क्वार नवरात्रि का धूमधाम से आयोजन किया जाता है तथा भक्तजनों द्वारा ज्योति कलश का प्रज्वलन कराया जाता है। वर्तमान में श्री आदिशक्ति मां दुर्गा देवी मंदिर पब्लिक ट्रस्ट धनपुर मे श्रद्धालुओं द्वारा आस्था के दीप प्रज्वलित कराए गए हैं जिसमें 156 जवारा कलर तथा 156 ज्योति कलश का प्रज्वलन कराया गया है।ग्राम धनपुर में स्थित श्री आदिशक्ति मां दुर्गा देवी मंदिर की बढ़ती कीर्ति को देखते हुए यहां कमिश्नर रहे आईएएस श्रीसोन मणि बोरा जी ने अपने मार्गदर्शन में कलेक्टर की अध्यक्षता में ट्रस्ट का गठन कराया है जो वर्तमान नवगठित जिला गौरेला पेंड्रा मरवाही का पहला पब्लिक ट्रस्ट है। वर्तमान में इस ट्रस्ट की प्रबंधक एवं संचालक जिले की कलेक्टर रिचा प्रकाश चौधरी हैं तथा अध्यक्ष मरवाही की एसडीएम सुश्री हितेश्वरी बाघे है।

 श्री आदिशक्ति मां दुर्गा देवी मंदिर पब्लिक ट्रस्ट धनपुर का पंजीयन क्रमांक 101 है। ट्रस्ट के संस्थापक ब्रह्मलीन संत बाबा मनु गिरी जी महाराज है  । यहां की पौराणिक महत्ता को देखते हुए यहां एक पुरातत्व भवन छत्तीसगढ़ शासन की ओर से बनवाया जा रहा है तथा श्री आदिशक्ति मां दुर्गा देवी मंदिर धनपुर के सामने स्थित सोमनाथ सरोवर का लगभग 40 लाख की लागत से सुंदरीकरण छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा कराया जा रहा है।

 प्राकृतिक सुषमा से परिपूर्ण पत्थर एवं हरियाली से पटी पहाड़ी के नीचे मुख्य मार्ग पर स्थित श्री आदिशक्ति मां दुर्गा देवी मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती हैं जहां लोगों की मुरादे पूरी होती है। कहा जाता है कि हैहैवंशी राजा रतन देव तुमान से अपनी राजधानी धनपुर स्थानांतरित करना चाहते थे धनपुर को दुल्हन की तरह सजाया गया था हैहैवंशी राजा शिकार करते हुए रतनपुर पहुंच गए वहां उन्हें महामाया देवी के दर्शन हुए जिसके कारण उन्होंने रतनपुर को अपनी राजधानी बना ली एवं मां महामाया के मंदिर का निर्माण रतनपुर में किया और इस तरह धनपुर उपेक्षित रह गया।   यहां खुदाई के दौरान मठ मंदिर के अवशेष मिलते है जिससे यहां के प्राचीन इतिहास के वैभव एवं गौरवशाली होने का प्रमाण मिलता है। धनपुर के आसपास भी अनेक प्राकृतिक एवं पौराणिक स्थान है जिसमें भस्मासुर बेनी बाई के आदि प्रमुख है।

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