कोरबा/कटघोरा(IBN-24NEWS) संविधान की धारा 46 (1) के अनुसार किसी भी महिला को जब तक विशेष परिस्थितियां न हो गिरफ्तार नही किया जा सकता। खासकर गिरफ्तारी भी तबतक संभव नही जबतक कोई महिला पुलिस अधिकारी या कर्मी न हो। इसके अलावा महिला आरोपी की जांच एक महिला पुलिसकर्मी ही कर सकती है। कोई पुरुष पुलिसकर्मी किसी भी सूरत में उसे हाथ नही लगा सकता। किंतु कटघोरा पुलिस ने इस संविधान को तब बदल डाला जब एक आरक्षक महुआ शराब पकड़ने आदिवासी ग्रामीण महिला के घर घुस 3 लीटर शराब जब्ती के साथ न सिर्फ अकेली महिला को अपने साथ दोपहिया वाहन में बैठा थाने ले आया, बल्कि थाना में भारी भरकम शराब जब्ती का प्रकरण बना उसी आरक्षक के माध्यम से आरोपी बनाए महिला को न्यायलय में भी पेश किया गया।
ज्ञात हो कि आदिवासी समाज में महुआ शराब का हमेशा से इस्तेमाल होता रहा है। जो उनकी संस्कृति और परंपरा का भी एक हिस्सा है। तथा उनके अपने पर्व पर भी इसका खूब इस्तेमाल होता है। और वे अपने देवताओं पर भी इसे अर्पित करते आए हैं। आदिवासियों के इस संस्कृति व परंपरा को ध्यान में रख शासन द्वारा भी आदिवासी परिवार को खुद के इस्तेमाल के लिए 5 लीटर तक महुआ शराब बनाने एवं रखने की छूट दी गई है। लेकिन अधिकतर आदिवासी परिवार को शासन से मिले छूट व कानून में महिलाओं को बहुत से दिए गए अधिकार के बारे में ज्यादा जानकारी नही होने का फायदा कुछ मौकाफिरस्त वर्दीधारी उठाते है। कुछ इसी तरह का फायदा इन दिनों कटघोरा पुलिस उठा रही है। प्राप्त जानकारी के अनुसार कटघोरा थाना में पदस्थ आरक्षक प्रीतम राठौर बीते 26 अक्टूबर को कच्ची शराब पकड़ने ग्रामीण क्षेत्र की ओर निकला। जहां बछेरा नगोई निवासी बृहस्पति बाई गोंड़, 30 वर्ष के घर हाथभट्टी शराब होने की सूचना पर उक्त महिला के घर पर आरक्षक ने दबिश दिया। जहां से उसे 3 लीटर महुआ शराब मिला। इस दौरान घर पर अकेली महिला को आरक्षक द्वारा अपने दोपहिया वाहन में बैठा जब्त शराब के साथ थाने ले गया। तथा थाने में भारी भरकम शराब जब्ती का मामला बना महिला के विरुद्ध कार्यवाही करते हुए उसे न्यायालय में पेश किया गया। इस दौरान भी वही आरक्षक महिला को न्यायलय लेकर पहुँचा जो घर से पकड़कर थाने ले गया था। अब यहां पर सोचनीय बात यह है कि ग्रामीण महिला को घर से पकड़कर न्यायालय तक ले जाने के दौरान कोई भी महिला पुलिस नही था। कानून में क्या एक महिला के विरुद्ध ऐसा पुलिसिया कार्यवाही वाजिब है..? यदि हाँ.. तो संविधान में उल्लेख क्यों नही, और यदि न..तो किस अधिकार के तहत एक पुरुष पुलिसकर्मी ने महिला अधिकार का हनन किया..? मामले को लेकर आरोपी बनाए गए पीड़िता आदिवासी महिला बृहस्पति बाई ने बताया कि उसके घर- परिवार के पुरुष वर्ग महुआ शराब का सेवन करते है इसलिए वह शराब बनाकर रखती है। बीते 26 अक्टूबर को भी वह शराब बनाकर रखी थी, जिसकी मात्रा तकरीबन 3 लीटर रही होगी। किंतु अचानक घर पहुँचे प्रीतम नामक पुलिसकर्मी ने शराब व उसे अपने साथ बैठाकर थाने ले आया। जहां से कार्यवाही करते हुए उसे न्यायालय में पेश किया। वैसे देखा जाए तो कटघोरा पुलिस महुआ शराब के ठिकानों पर जाकर कार्यवाही तो करती है और भारी मात्रा में शराब के साथ आरोपी को भी पकड़ती है। लेकिन थाना लाने के बाद जब्त शराब की मात्रा एकाएक कम होकर ढाई से लीटर तक हो जाती है। और यह सब इसलिए हो जाता है क्योंकि कटघोरा पुलिस *"चढ़ावा लिए चले ना काम...पाप मिटावन सीताराम"* की तर्ज पर कार्य कर रही है। एक ओर जिला पुलिस कप्तान द्वारा आमजन एवं बच्चों के मन से पुलिस का भय हटाकर आपसी सामंजस्य बनाने व उन्हें कानूनन अधिकार के बारे में जागरूक करने गांव- गांव जाकर चलित थाना, संगवारी पुलिस, खाकी के रंग- स्कूल के संग जैसे अभियान चलाया जा रहा है। वहीं इसके विपरीत कटघोरा पुलिस अपनी हरकतों से वर्दी की छवि धूमिल करने में लगी है।
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